प्यारे भाइयो! और बहनो!
अन्त तक पढ़ें और हर दृष्टिबाधित भाईबहन तक पहुँचाएँ, ताकि सभी सच से अवगत हों सकें, क्योंकि यह लेख सबके हित में अत्यन्त आवश्यक है।
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दिनांक 22 सितम्बर 2018 को रूंगटा साहब द्वारा आयोजित की गई मीटिंग के विषय में तो आप सब काफी हद तक जानते ही हैं, और वहाँ क्या हुआ? यह भी जानते हैं।
आपको याद हो, तो कुछ भाइयों ने अपने उद्गार व्यक्त करने चाहे और कुछ बातें बोलने की कोशिश की, किंतु अपने पुराने व्यवहार के मुताबिक ही रूंगटा साहब ने उन्हें बोलने से रोक दिया और उन पर व्यंग्य कसकर उन्हें चुप करा दिया। इस पूरी मीटिंग में रूंगटा साहब ने यह तय किया कि हम आन्दोलन अथवा लिखित विरोध द्वारा अपनी बात प्रधान मन्त्री जी तक पहुँचाएंगे और अपनी बात मनवाने की कोशिश करेंगे। इन्होंने कोर्ट में केस फ़ाइल किए जाने को भी गलत ठहराया और अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए ऐसी तरकीब निकाली कि जिसमें इतना अधिक समय लग जाएगा कि तब तक हमारे दृष्टिबाधित भाई-बहनों का बहुत ही ज़्यादा नुकसान हो चुका होगा।
आप सब यह सोचिए कि यदि पहले तथाकथित मन्त्री जी कुछ नहीं कर सके, तो अब भला क्या कर लेंगे? हो सकता है कि प्रधान मन्त्री जी भी वही कार्य करें, जो पहले किया गया है! अर्थात हमारे मुद्दे को कानूनी प्रक्रिया में डाल दें!
फ़िर सबसे बड़ी बात, प्रधान मन्त्री जी कोई अपने घर की दाल तो हैं नहीं, जो सबको स्वतः ही उपलब्ध हो जाएंगे! उन्होंने हर गतिविधि के लिए डिपार्टमेंट भी तो इसीलिए बनाए हैं न कि हर कार्य को वे स्वयं नहीं देख सकते! फिर हमारे इस मुद्दे को वे क्योंकर देखने लगे?
क्या आप ने सोचा है कि रूंगटा जी की नीति पर चलने से क्या होगा? नहीं ना? हो सकता है कि कुछ भाई-बहनों ने सोचा भी हो, किंतु बुद्धि से सोचा जाए, तो यह मामला कमेटियों और मीटिंग्स में फँसकर रह जाएगा और हम सभ दृष्टिबाधितों का नुकसान होता ही चला जाएगा।
तो आप सब भ्रष्ट रूंगटा जी की बातों में मत आइए औऱ कुछ दूसरा ही रास्ता निकालिए, जो रूंगटा जी की ओछी राजनीति से परे हो।
भाइयो और बहनो! आप सब जानते ही हैं कि इस राइटर गाइड लाइन से पहले एस.एससी. जैसे एक्ज़ाम्स में क्या होता रहा है और उस समय भी राइटर चेक करने का प्रावधान था एवं हमें नियमानुसार गणित स्लेट, ब्रेल स्लेट आदि ले जाने की छूट थी, किंतु जब हम लेकर जाते थे, तो हमें उन उपकरणों को ले जाने से रोक दिया जाता था।
साथ ही जिस मर्जी को राइटर बनाकर बैठा दिया जाता था और जैसे-तैसे हमें पास होने से रोक ही लिया जाता था।
हाँ, कुछ भाई-बहनों की के साथ स्थिति दूसरी हो सकती है, किंतु अक्सर हमें अनुचित बातों का ही सामना करना पड़ता था।
उन दिनों भी यही रूंगटा साहब ज़िन्दा थे, किंतु ये महोदय कभी आगे नहीं आए कि हमारे भाई-बहनों के साथ ग़लत हो रहा है।
यदि ये सही होते, तो उन दिनों भी भरपूर आवाज़ उठाते और हमारे दृष्टिबाधित भाई-बहनों का साथ देते।
चूँकि आज इन्हें अपनी कुर्सी छिनती दिखाई दे रही है और राज्यसभा से दूर होते दिखाई दे रहे हैं, तो इन्हें हमारा हित याद आ रहा है! पहले तो ये साहब किसीका फोन तक नहीं उठाते थे और अन्य लोगों से कहलवा देते थे कि कह दिया जाए कि रूंगटा साहब अभी व्यस्त हैं और बाद में सम्पर्क करें।
ऐसे दोगले हैं ये साहब!
आपको बता दें कि लड़कियों को भड़काया जा रहा है, एन.एफ़.बी. के हॉस्टल में रहने वाली लड़कियाँ इसलिए भी खुलकर विरोध नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि कुछ को यह डर है कि उनके साथ कार्यवाही की जा सकती है और किसी-न-किसी बहाने से हॉस्टल से निकाला भी जा सकता है।
साथ ही इन लड़कियों को कहा भी जा रहा है कि वे किसी से न मिलें और मंजुला मैडम आदि की बात भी न सुनें, क्योंकि इन्हें डर है कि यदि लड़कियाँ सच सुनेंगी तो इनके वोट कम हो जाएंगे।
आपको एक बात स्पष्ट करता चलूँ कि मंजुला मैडम ही वह महोदया हैं, जिन्होंने पिछले कुछ समय में विद्यार्थियों के हित में पुलिस की लाठी खाई थी और आज उन्हीं के विषय में भड़काया जा रहा है, वह भी सिर्फ इसलिए कि मंजुला मैडम कौल साहब की संस्था से जुड़ी हैं।
मैं तो समझता हूँ कि यदि आप अपनी जगह सही हैं, तो सबको अपने बुद्धि से काम लेने दीजिए, सुनने दीजिए सबको औऱ मिलने दीजिए अन्य विद्यार्थियों से।
इन्हें रोककर तो आप विद्यार्थियों में आपसी विद्वेष की भावना जागृत कर रहे हैं, अपना स्वार्थ स्पष्ट कर रहे हैं और यह झलका रहे हैं कि आपकी नीयत में खोट है, फिर आप चाहे; स्त्री हों अथवा पुरुष।
तो भाइयो! और बहनो! मैं आप सब से विनम्र निवेदन करता हूँ कि आप सब पंकज सिन्हा जी के साथ मिलकर दृष्टिबाधित समाज का हित साधें तथा पंकज सिन्हा जी के विषय में भ्रष्ट रूंगटा जी समर्थितों द्वारा फैलाई जा रही व्यर्थ की बातों में न आएँ।
आप सब यह देखें कि इतने कम समय में पंकज सिन्हा जी ने ऐसे-ऐसे केसों पर सफलता प्राप्त की है, जिस पर पहले कोई आगे नहीं आया, इसके लिए आप इनका छोटा-सा कार्यकाल उठाकर देख सकते हैं।
आप सब यह तो जानते ही हैं कि मानवाधिकार विभाग के लिए कार्य करना सबके लिए सुलभ नहीं होता, क्योंकि वहाँ कोई योग्य व्यक्ति ही पहुँच सकता है और 6 वर्ष पंकज सिन्हा जी ने वहाँ कार्य किया है और वान्छित सफलताएँ भी हासिल की हैं।
लेखक दृष्टिबाधित समाज का शुभचिंतक है तथा इस राजनीति से दूर रहने के लिए नाम उजागर करने से एकदम परे है।