As received on whatsapp

गोपाल खण्डेलवाल, 18 वर्षों से व्हीलचेयर पर बैठकर हजारों बच्चों को दे चुके मुफ्त में शिक्षा

एक सड़क हादसे में 18 वर्ष पहले अपने शरीर का आधा हिस्सा गवां चुके गोपाल खण्डेलवाल अपने दोनों पैरों के सहारे दो कदम भले ही नहीं चल पाते हों, लेकिन अब तक हजारों बच्चों को बगीचे के नीचे निःशुल्क पढ़ाने का काम जरूर कर चुके हैं। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के साथ ही गाँव के लोगों का जरूरत पड़ने पर मुफ्त में इलाज भी करते हैं। मूल रूप से बनारस में एक साधारण परिवार में जन्मे गोपाल खण्डेलवाल (48 वर्ष) जब 27 वर्ष के थे तो एक सड़क हादसे में इनके कमर के नीचे का पूरा हिस्सा पैरालाइज्‍ड हो गया। तीन वर्ष तक बीएचयू अस्पताल में लगातार इलाज चलने के बाद जब इन्हें अपनी जिन्दगी बोझिल लगने लगी तो इनके मित्र ने अपने गाँव चलने की सलाह दी। गोपाल खण्डेलवाल गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “जिंदगी बोझिल लग रही थी, माँ-बाप भी नहीं रहे थे, दो भाई दूसरे शहर में ढाबों पर काम करके अपना खर्चा चला रहे हैं, मेरी देखरेख करने वाला भी कोई नहीं बचा था।”

वो आगे बताते हैं, “मित्र ने अपने गाँव में एक कमरा बनाकर रहने को दे दिया, बैठे-बैठे जिन्दगी कट नहीं रही थी, सोचा क्यों न बच्चों को पढ़ाना शुरू करूं, तबसे पढ़ाना शुरू कर दिया, अब तक इस बगीचे में हजारों बच्चों को पढ़ा चुका हूँ, गाँव में अगर किसी को छोटी-मोटी चोट लग जाए तो पट्टी भी कर देता हूँ।”

वो आगे बताते हैं, “मित्र ने अपने गाँव में एक कमरा बनाकर रहने को दे दिया, बैठे-बैठे जिन्दगी कट नहीं रही थी, सोचा क्यों न बच्चों को पढ़ाना शुरू करूं, तबसे पढ़ाना शुरू कर दिया, अब तक इस बगीचे में हजारों बच्चों को पढ़ा चुका हूँ, गाँव में अगर किसी को छोटी-मोटी चोट लग जाए तो पट्टी भी कर देता हूँ।”

मिर्जापुर जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कछवा ब्लॉक के पत्तीकापुर गाँव में वर्ष 1999 में गोपाल के मित्र डॉ अमित दत्ता अपने गाँव इन्हें घुमाने ले आये। कुछ दिन रहने के बाद जब गोपाल का मन इस गाँव में लग गया तो इन्होंने यहां एक बगीचे में बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू कर दिया। पहले दिन सिर्फ एक छात्रा पढ़ने आयी, धीरे-धीरे लोगों में विश्वास बढ़ा और लोग अपने बच्चों को इनके पास पढ़ाने के लिए भेजने लगे।

इस गाँव में पढ़ाने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए गोपाल बताते हैं, “अब मेरी जिंदगी यही बच्चे हैं, सुबह पांच बजे से लेकर शाम छह बजे तक का वक़्त इन बच्चों के साथ गुजरता है, ये बच्चे हर सुबह मुझे चारपाई से उठाकर व्हीलचेयर पर बैठा देते हैं, पूरे दिन बैठे-बैठे इसी बगीचे में पढ़ाता रहता हूं। शाम को ये बच्चे फिर मुझे चारपाई पर लिटा देते हैं।” गोपाल आज भी एक कदम खड़े होकर चल नहीं पाते हैं लेकिन ये चीज उन्होंने कभी अपने काम में बाधा नहीं बनने दी। गोपाल के इस हौसले को आज पूरा क्षेत्र सलाम करता है। गोपाल के पास आसपास के दो किलोमीटर दूर के बच्चे पढ़ने आते हैं।

पेड़ों की छाया में गोपाल जो पाठशाला चलाते हैं उसका नाम उन्होंने अपनी माँ के सरनेम पर ‘नोवाल शिक्षा संस्थान’ रखा है। 18 वर्षो में इस पाठशाला में अब तक हजारों बच्चे पढ़ चुके हैं। अभी इनकी पाठशाला में 67 बच्चे आ रहे हैं। ज्यादातर ये बच्चे वंचित समुदाय से हैं, जो कभी मजदूरी करने की वजह से स्कूल नहीं जाते थे। अब यहां अच्छे घरों के बच्चे भी पढ़ने आते हैं।

वंचित समुदाय के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए गोपाल सिर्फ इन बच्चों को पढ़ा ही नहीं रहे हैं बल्कि ये अच्छे स्कूल में एडमिशन लें इसके लिए सोशल साइट्स की मदद भी ले रहे हैं। गोपाल ने बताया, “जो बच्चा गरीब होता है पर वो पढ़ना चाहता है उसकी फोटो या वीडियो बनाकर हम फेसबुक पर डालतें हैं और अपने मित्रों से ये अपील करते हैं कि अगर सम्भव हो सके तो इस बच्चे की पढ़ाई का खर्चा आप उठा लो।” वो आगे बताते हैं, “मेरे मित्र उस बच्चे की फीस का पैसा मेरे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं, फिर उन बच्चों का मै अच्छे स्कूल में एडमिशन करा देता हूँ, ये या तो बहुत गरीब बच्चे होते हैं, या फिर सरकारी से प्राइवेट स्कूल में पढ़ना चाहते हैं।” गोपाल के इस प्रयास से अबतक 50 से ज्यादा बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं।

गोपाल बच्चों को सिर्फ शिक्षा ही नहीं देते बल्कि उन्हें बात करने के सलीके से लेकर कपड़े पहनने के भी तौर तरीके भी बताते हैं। ये बच्चे पढ़ाई के अलावा योग करना भी सीखते हैं। गोपाल का कहना है, “मैं ये तो नहीं कहता कि मेरे यहां पढ़ने वाले बच्चे बहुत होशियार है पर जो भी बच्चे यहां पढ़ने आते हैं उनसे बात करने के बाद ये आपको जरूर लगेगा कि उन्होंने शिक्षा के अलावा सलीका भी सीख लिया है।”

मित्र के सहयोग से जिन्दगी को जीने की मिली राह गोपाल के मित्र डॉ अमित दत्ता न सिर्फ इन्हें अपने गाँव लेकर आये बल्कि इनके रहने खाने और इलाज की भी पूरी जिम्मेदारी अभी भी निभा रहे हैं। अमित दत्ता इनकी दवाईयों के अलावा इन्हें जरूरत की और भी कई तरह की दवाईयाँ दे देते हैं जिससे जरूरत पड़ने पर ये गाँव के लोगों का मुफ्त में इलाज कर सकें। गोपाल का कहना है, “जब मै जिन्दगी से पूरी से तरह हार गया था तब हमारे इन्ही मित्र ने हमे जीने के लिए उत्साहित किया था, अगर ये हमे इतना सहयोग न देते तो शायद आज हम ये न कर रहे होते जो कर रहे हैं, इस दोस्त ने मदद की शुरुआत की तभी आज हमारे साथ साथ बहुत लोग हैं।”

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s