मुझे दिव्यांग कहने वाले,
मुझे दिव्यांग कहने वाले,
तू भी दिव्यता का अनुभव कर,
सिर्फ एक साल के लिए अपनी
बांध ले पट्टी एक आंख पर फिर,
आलिशान मकान से निकल,
आजा खुली सडक पर,
एक पैर से वैशाखी लेकर चल
पहुंच कर दिखा मंज़िल पर.
काफी आसान होता है
किसी को कोई विशेषण देना,
पर जिस पर बिती वही बताए
कितनी मुश्किलो भरा है जीना.
बड़े भारी विशेषणों से
क्या कभी किसी का पेट भरा है?
विशेषणों के बोज तले
आज हर विकलांग अर्ध मरा है.
अब तु ही बजाले जोरदार तालिया,
लंबे चौड़े भाषणों पर,
मुझे दिव्यांग कहने वाले
तू भी दिव्यता का अनुभव कर,
मुझमे दिव्यता है ना फिर क्यों,
मै भूखा ,कंगाल घुमता हूं?
रोटी के लिए क्यों हर चौखट पर,
मै कदम लोगों के चुमता हूं?
क्यो होता अपमान मेरा हर घडी?
क्यो मिलती उपेक्षा हैं?
रोजगार मुझ से रुठा क्यो हैं?
क्यो आधी अधुरी शिक्षा हैं?
आ तू भी लग जा कतार में,
प्रमाणपत्र के लिए अर्ज़ी कर,
मुझे दिव्यांग कहने वाले
तू भी दिव्यता का अनुभव कर ,
वह गुजरा था क्या वो फकीर था,
जिसने हरिजन कहकर बुलाया था,
वर्णद्वेश का कडवा जहर
अमृत बोल कर पिलाया था;
तू भी खुद को फकीर है कहता,
विकलांगों से दिव्यांग बनाया,
अपमान उपेक्षा से मरने वालों को
मखमल का तुने कफन पहनाया .
अब तू ही बता हरिजन और दिव्यांग में
क्या गुणात्मक है अंतर?
मुझे दिव्यांग कहने वाले
तू भी दिव्यता का अनुभव कर।
सरकारे चाहे #दिव्यांगों के लिए चाहे कितने भी #एक्ट बनाए चाहे कितने भी #कानून बनाए लेकिन उसका तब तक फायदा #दिव्यांगो तक नहीं मिल पाता जब तक उसको जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाता जमीनी स्तर पर लागू नहीं किए जाने पर #DIVYANGO तक उनका फायदा नहीं पहुंचता तो ऐसे कानून का क्या मतलब !!!
#disabilityact2016 को जमीनी स्तर पर लागू किया जाना चाहिए! By the
निवेदक आलोक कुमार चौरसिया (अधिवक्ता)
आरटीआई एक्टिवस्ट, दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता!