आसान नही है रास्ते की कोई किसी कानून का पालन आसानी से करवा लें।
वर्ष 1995 में विकलांगो के लिए एक कानून आया था जिससे विकलांगो के अधिकार, समान अवसर , भागीदारी हर बात को रखी गयी थी।
साल दर साल बितता गया और जाकर के अब पुनः एक नया सख्ती का कानून *विकलांगो के अधिकार अधिनियम- 2016* लाया गया जिसमें भी विकलांगो के अधिकार, समान अवसर, भागीदारी और बहुत कुछ रखा गया है। लेकिन ये सब कानून बनने के बाद भी इसका पालन नही हो रहा था।
तब हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने सोचा अब क्या किया जाए, तब उन्होंने *विकलांगो को विकलांग कहना ही बंद कर दिया* एक रातो रात आदेश हुआ कि अब विकलांग के जगह उन्हें *दिव्यांग (भगवान)* कहा जायेगा जिससे कि उनके दिव्य शक्ति के कारण उनको कोई भी कानून, सुविधा, आरक्षण, इत्यादि की जरूरत नही पड़ेगी।
भाई प्रधानमंत्री की बात और कोई सरकार न माने ऐसा कैसे हो, तब ही तो हमारे बिहार सरकार में समाज कल्याण विभाग के सारे योजनाओ, कानूनों को देखने वाला *सक्षम* कार्यालय कानून आने के तीन साल बाद भी दूसरे तले पर अवस्थित है। जिसपर विकलांगजन जाए तो सीढ़ियों से या फिर बिना मिले, बिना काम किये लौट जाए। सामाजिक सुरक्षा एवं निःशक्तता निदेशालय के निदेशक महोदय भी दूसरे तले पर ही भेंट करेंगें, क्योंकि वे *सक्षम* के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी भी हैं।
मूर्ख बनाते है वे हम विकलांगो को जो एक बड़ा मंच पर बिना तार के माइक मिल जाने पर एक विद्वान के तरह दिव्यांगों/विकलांगो पर लम्बी-लम्बी भाषण दे जाते हैं।
शर्म करनी चाहिए आपको की एक विकलांगो से संबंधित भवन को तो सही कर नही रहे और राज्य में बुनियान भवन खोलेंगे,
शर्म करनी चाहिए आपको की एक व्हील चेयर जाने लायक तो जगह है नही और पूरे राज्य में बुनियाद वान चलाएंगे,
शर्म करनी चाहिए आपको की किसी काम पर मिलने के लिए तो दूसरे तले पर बुलाते हैं तथा मिलते भी नही और हर जगह बिना मांगे अधिकार देने की बात करते हैं,
शर्म करनी चाहिए आपको की राजधानी में राज्य कार्यालय तो ठीक है नही और जिलों में ठीक करने हेतु समीक्षा का ठोंग कर के पिकनिक मनाते चल रहें।
क्या आप कहीं ये तो नही सोच रहे कि “तुम तो दिव्यांग (भगवान) हो, बाधामुक्त वातावरण क्यों…..???
क्या कहूँ आपको खुद भी आप सोचो………
Deepak Kumar,
Secretary,
Viklang Adhikar Manch, Bihar